Chamba News Today: बैरेवाली भगवती देवीकोठी से चामुंडा माता से मिलने निकलीं

पांच दिन की पैदल यात्रा के बाद चम्बा में दो देवी बहनों का होगा ऐतिहासिक मिलन;

Update: 2025-04-14 11:52 GMT

सार

Chamba News Today। चुराह की प्रसिद्ध बैरेवाली भगवती देवी हर साल की तरह इस वर्ष भी अपनी बहन चामुंडा माता से मिलने के लिए देवीकोठी से चम्बा के लिए रवाना हो गई हैं। पांच दिन की पैदल यात्रा के बाद वे 17 अप्रैल को चम्बा पहुंचेंगी। चामुंडा मंदिर परिसर में दोनों बहनों के मिलन पर भव्य जातर मेले का आयोजन होगा।

बैरेवाली भगवती ने शुरू की चम्बा यात्रा

चम्बा (काकू चौहान): चुराह की देवीकोठी से निकलीं बैरेवाली भगवती चम्बा की ओर अपनी बहन चामुंडा माता से मिलने जा रही हैं। परंपरा के अनुसार, माता हर साल बैसाखी के अवसर पर अपनी बहन से मिलने पहुंचती हैं। ढोल-नगाड़ों और कारदारों के साथ देवी लगभग 125 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकली हैं, जो करीब पांच दिन में पूरी होगी।

Chamba News Today: पंद्रह दिन रहेंगी चामुंडा माता के साथ

माता 17 अप्रैल को चम्बा पहुंचेंगी और लगभग पंद्रह दिन तक चामुंडा माता मंदिर में ही ठहरेंगी। इस दौरान भक्तगण उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण देंगे और विशेष पूजा-अर्चना करेंगे। देवी के आगमन को लेकर भक्तों में उत्साह चरम पर है।

भव्य जातर मेले की तैयारियां शुरू

दोनों देवी बहनों के मिलन के अंतिम दिन चामुंडा माता मंदिर परिसर में पारंपरिक जातर मेले का आयोजन किया जाएगा। इस मेले में हजारों श्रद्धालु भाग लेकर इस ऐतिहासिक परंपरा के साक्षी बनेंगे। चामुंडा माता मंदिर को सजाया जा रहा है और आयोजन को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं।

सदियों पुरानी परंपरा, गहराई से जुड़ी आस्था: Chamba News Today

मंदिर के मुख्य पुजारी हरि सिंह शर्मा के अनुसार, यह परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी चम्बा क्षेत्र के लोग इस परंपरा को पूरी श्रद्धा से निभा रहे हैं। हर साल बैसाख माह की संक्रांति को बैरेवाली भगवती चम्बा पहुंचती हैं और बहन चामुंडा माता के साथ कुछ समय बिताने के बाद अपने निवास स्थान देवीकोठी लौट जाती हैं।

देवी के आगमन पर होती है बारिश और तेज हवाएं

मान्यता है कि जब बैरेवाली भगवती चम्बा पहुंचती हैं तो बारिश और तेज हवाएं चलती हैं। यह संकेत होता है कि इंद्रदेव भी इस मिलन के साक्षी बनते हैं। चम्बा में यह मिलन न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा है।

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